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सूफ़ी कहावत
दर इन-ए दुनिया किसी बे ग़म न बाशद, अगर बाशद बनी आदम न बाशद
इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं है जिसके पास कोई दुःख न हो, अगर कोई है; वह मनुष्य नहीं है।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी कलाम
बुत-परस्तानेम मा इस्लाम मा रा कार नीस्तग़ैर-ए-तार-ए-ज़ुल्फ़ मा रा रिश्तः-ए-ज़ुन्नार नीस्त
ज़ैबुन्निसा बेगम
कलाम
जहान-ए-शौक़ की दुनिया परेशाँ है जहाँ मैं हूँहर इक जानिब मिरा जल्वा नुमायाँ है जहाँ मैं हूँ
बह्ज़ाद लखनवी
फ़ारसी कलाम
जान-ए-जहाँ जहान-ए-जाँ पीर-ए-मन-ओ-ख़ुदा-ए-मनशान-ए-ख़ुदा ख़ुदा-ए-शान पीर-ए-मन-ओ-ख़ुदा-ए-मन
मुजीब
कलाम
जहान-ए-आशिक़ी कहते हैं जिस को वो जहाँ मैं हूँमोहब्बत की ज़मीं मैं हूँ वफ़ा का आसमाँ मैं हूँ
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
जहाँ अगरचे दिगर-गूँ है क़ुम-बि-इज़्निल़्लाहवही ज़मीं वही गर्दूं है क़ुम-बि-इज़्निल़्लाह
अल्लामा इक़बाल
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ आशिक़ाँ ऐ आशिक़ाँ हंगाम-ए-कूच अस्त अज़ जहाँदर गोश जानम मी-रसद तबल-ए-रहील अज़ आसमाँ